जनसंचार मे सात सी (7c) की भूमिका
जनसंचार
में सात C
की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसका
उपय़ोग कर संदेशकर्ता बड़े ही आसानी से प्राप्तकर्ता के मस्तिष्क में अपनी बात
(संदेश) को पहुँचा सकता है। संचार विशेषज्ञ “फांसीस बेटजिन” ने जनसंचार के
उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सात c को महत्वपूर्ण माना है। जनसंचार की सफलता के
लिए इन सात घटको का होना अति आवश्यक है क्यों की बिना सात घटकों के संचार को सफल
बनाना कठिन है ।
जनसंचार
को सफल बनाने के लिए, संदेश
पाने वाले की दृष्टि में उसकी विश्वसनीयता होनी चाहिए एवं संदर्भ और विषयवस्तु का
चुनाव लक्षित समूह को ध्यान में रख कर किया जाना चाहिए तथा संदेश स्पष्ट एवं
निरंतर और एकरूपता में होना चाहिए।
जनसंचार में सात c
- विश्वसनीयता (credibility)
- संदर्भ (context)
- विषयवस्तु (content)
- स्पष्टता(clarity)
- निरंतरता एवं एकरूपता(continuity & consistency)
- माध्यम (channel)
- श्रोताओं की क्षमता ( capability of audience)
विश्वसनीयता(credibility)
संचार की मूल प्रक्रिया का आधार विश्वास है । संदेशकर्ता द्वारा भेजी गई सूचना श्रोता की नजर में विश्वसनीय होना चाहिए , संदेश के विश्वसनीय होने पर प्रापक अर्थात प्राप्तकर्ता के मन में संदेशकर्ता के प्रति अच्छी छवि बनती है। एक समय ऐसा भी आता है जब संप्रेषक द्वारा संप्रेषित सूचना की गारंटी प्राप्तकर्ता स्वयं दूसरों को देने लगता है, इस दृष्टि से खरा न उतरने वाले संचारको को प्राप्तकर्ता शीघ्र नजर अंदाज कर देता है।
संचार की मूल प्रक्रिया का आधार विश्वास है । संदेशकर्ता द्वारा भेजी गई सूचना श्रोता की नजर में विश्वसनीय होना चाहिए , संदेश के विश्वसनीय होने पर प्रापक अर्थात प्राप्तकर्ता के मन में संदेशकर्ता के प्रति अच्छी छवि बनती है। एक समय ऐसा भी आता है जब संप्रेषक द्वारा संप्रेषित सूचना की गारंटी प्राप्तकर्ता स्वयं दूसरों को देने लगता है, इस दृष्टि से खरा न उतरने वाले संचारको को प्राप्तकर्ता शीघ्र नजर अंदाज कर देता है।
अत: प्रभावी संचार के लिए संदेश का विश्वसनीय होना अतिआवश्यक है और श्रोता की
स्त्रोत की शक्ति पर भी भरोसा होना चाहिए ।
संदर्भ (context)
संदेश
में संदर्भ का होना अति आवश्यक है क्यों की बिना संदर्भ के संदेश के विषय को जान
पाना मुश्किल है।संदर्भ से स्वतः ही संदेश की विश्वसनीयता बढ़ जाती है तथा संदर्भ के कारण संदेश में गलती होने की संभावना
भी कम होती है व संदर्भ के कारण संबन्धित पक्ष की सहभागिता भी सिद्ध होती है। संदेश
और संदर्भ में विरोधाभास परिलक्षित नहीं होना चाहिए क्योंकि विरोधाभास होने पर
श्रोता वर्ग भ्रमित हो सकता है जिससे श्रोता संदेश के उद्देश्यों को पूरा करने में
असफल हो जाएगा, इसमे
भागीदारी एवं पुनरावृत्ति की व्यवस्था होती है ।
विषयवस्तु(content)
विषयवस्तु
का चुनाव लक्षित समूह के अनुरूप होना चाहिए क्योंकि प्रायः संप्रेषक आमतौर पर
संदेश अपने अनुभव ,ज्ञान
व संस्कृति के आधार पर तैयार करता है अतः संप्रेषक और प्राप्तकर्ता के बीच यदि कोई
साझा अनुभव नहीं है तो संचार लगभग असंभव हो जाता है अतः प्रभावकारी ढंग से संचार
करने के लिए यह आवश्यक है की संदेशकर्ता या संप्रेषक के शब्दो और प्रतिको का अर्थ, संदेश प्राप्तकर्ता के लिए भी वही होना चाहिए
जो संदेशकर्ता के लिए होता है।
संदर्भ
के अंतर्गत विषयवस्तु का होना अतिआवश्यक है क्योंकि संदर्भ और विषयवस्तु में
विरोधाभास होने पर श्रोतावर्ग भ्रमित हो सकता है।
स्पष्टता (clarity)
संचार
को सफल बनाने के लिए संदेश को सरल से सरल तथा सामान्य शब्दो में संरचना करनी चाहिए
, शब्दो का चयन उचित होना चाहिए और उनका एक ही
अर्थ होना चाहिए ।
सरल
व सामान्य शब्दो में भेजे गए संदेश का अर्थ समझने में प्राप्तकर्ता को परेशानी
नहीं होती है उलझाऊ तथा मुहावरा युक्त संदेश को प्राप्तकर्ता नजर अंदाज कर देता
है।
निरंतरता एवं एकरूपता (continuity
& consistency)
संचार
न समाप्त होने वाली एक प्रक्रिया है, संदेश को प्राप्तकर्ता तक पहुँचने के लिए उसे लगातार
दोहराना पड़ता है प्राप्तकर्ता कभी -2 संदेश को समझ नहीं पता है जिससे संदेश की
पुनरावृत्ति का होना आवश्यक हो जाता है और
इस संदेश की पुनरावृत्ति में एकरूपता का होना भी आवश्यक हो जाता है अगर संदेश की
निरंतरता मे भिन्नता आती है तो संदेश का उद्देश्य भी बदल जाता है और प्राप्तकर्ता
संदेश का सही अर्थ नहीं निकाल पाता है व उस संदेश को प्राप्तकर्ता नजर अंदाज कर
देता है।
माध्यम (channel)
संचार
प्रक्रिया मे माध्यम की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योकि परिस्थिति , प्राप्तकर्ता और संदेश के अनुसार माध्यम की
प्रभावशीलता घटती बढ़ती रहती है अतः प्रभावी संचार के लिए माध्यम का चुनाव संदेश और
प्राप्तकर्ता की स्थिति को ध्यान मे रख कर करना आवश्यक है संदेशकर्ता को ऐसे
माध्यम का चुनाव करना चाहिए जिसकी प्राप्तकर्ता के बीच पहुँच होने के साथ-2
लोकप्रिय भी हो। केवल उन्हीं स्थापित माध्यमों का उपयोग किया जाना चाहिए,जिन्हें प्राप्तकर्ता उपयोगी और सार्थक समझता
हो।
श्रोताओ की क्षमता (capability of audience)
क्षमता
से आशय यह है की प्राप्तकर्ता संदेश को भलीभाँति समझ पता है या नहीं क्योंकि लक्षित
समूह के स्तर(क्षमता) को ध्यान मे रख कर विषय वस्तु का चुनाव करना चाहिए अगर
लक्षित समूह की क्षमता को ध्यान मे रख कर संदेशों का चुनाव नहीं होता है तो संदेश
पूरे विस्तृत क्षेत्र में कुछ ही लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ पता है यदि उनकी
क्षमताओं और आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा जाएगा तो संदेश अर्थहीन हो जाएगा।
उपर के
बिंदुओं से यह स्पष्ट होता है कि जनसंचार के लिए सात c की
भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। जनसंचार के विविध आयाम इन्हीं सात c पर
निर्भर करते हैं। इनमें से किसी एक की भी कमी होने पर जनसंचार का मूल आयाम पूरा
नहीं हो पाता है।
1 टिप्पणियाँ:
Thank you
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ